आपका स्वागत है Essay on Sanskrit in Hindi (संस्कृत पर निबंध हिंदी) आर्टिकल में। हमने आसान भाषा में इस निबंध को लिखा है जिससे आपको पढ़ने और समझने में कोई दिक्कत नहीं हो।
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तो चलिए बिना देर किये संस्कृत पर निबंध को सुरु करते है।
Essay on Sanskrit in Hindi | संस्कृत पर निबंध हिंदी में 200, 400, 500 शब्दों में।
प्रस्तावना
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति कि एक महत्वपूर्ण धरोहर है। यह भारत देश की सबसे प्राचीन भाषाओ में से एक है। भारत के संस्कृति को, ग्रंथो, काव्यों, उपनिषदो और पुरानो के रूप में देश विदेश तक पहुंचाने में संस्कृत भाषा का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
भारत एक सांस्कृतिक देश है, प्राचीन काल से ही पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति का अपना एक अलग वर्चस्व रहा है। यह भाषा आज भी इस वर्चस्व को, प्राचीन भारतीय संस्कृति को धर्म ग्रंथो के रूप में जिन्दा रखा है।
हमारे दैनिक जीवन के रीती रिवाज, हमारे यज्ञो, हवनो, यज्ञो पवित संस्कार आदि के मंत्र आज भी संस्कृत भाषा में लिखे हुए है। प्राचीन भारत में संस्कृत भाषा को ऋषि मुनि, देवता आदि उपयोग करते थे, इसी कारन संस्कृत भाषा को देव वाणी संस्कृत भी कहा जाता है।
हालाँकि ये बहुत दुःख की बात है कि संस्कृत भाषा भारत के बिरासतो में से एक, आज के युग में अपना पहचान खो रही है।
संस्कृत की उत्पत्ति
भगवन ब्रम्हा जी द्वारा संस्कृत भाषा का निर्माण किया गया है, इसी कारन संस्कृत को देववाणी संस्कृत भी कहा जाता है। ब्रह्मा जी ने इस भाषा का ज्ञान आकाशीय द्वीपों में रहने वाले ऋषियों को दी, ऋषि से शिष्यों एवं शिष्यों से उनके शिष्यों, ऐसे पीढ़ी दर पीढ़ी यह भाषा हमारे बीच तक पहुंची।
वैदिक और शास्त्रीय, साहित्य युग के दृस्टिकोण से संस्कृत को इन दो भागो में बांटा गया है। वेदो कि रचना 1000 से 500 ईसा पूर्व ( ऐसा मना जाता है) हुई थी, उस समय संस्कृत को मुख्य रूप से संचार, वार्तालाप के लिये उपयोग किया जाता था।
ऋग्वेद, पुराणों और उपनिषदों में वैदिक संस्कृत का प्रयोग किया गया था, जहाँ भाषा का सबसे मूल रूप का इस्तेमाल किया जाता था।
सुरुवाती संस्कृत शब्दाबली, व्याकरण और वाक्य विन्यास के दृष्टिकोण से काफी धनी थी, जो आज भी अपने उसी रूप में हमारे बिच है।
जहा तक बात करे संस्कृत के शास्त्रीय रूप की तो इसकी उत्पत्ति वैदिक काल के समाप्त होने के बाद हुई थी। उस समय उपनिषद लिखे जाने वाले अंतिम ग्रंथो में से एक थे।
उसके बाद महर्षि पाणनि एवं उनके वंशज ने परीकृत संस्करण की शुरुवात की। महर्षि पाणनि चौथी सताब्दी ईसा पूर्व के आस पास “आष्टाध्यीय” कि रचना कि, जिसका अर्थ होता है आठ अध्याय, ऐसे आज संस्कृत व्याकरण और शब्दाबली का एकमात्र श्रोत माना जाता है।
संस्कृत के अक्षर, स्वर एवं व्यंजन।
इसमें केवल 52 अक्षर, 16 स्वर और 36 व्यंजन है। इन 52 अक्षर आज तक उसी रूप में है। इन्हे आज तक संसोधित नहीं किया गया है और माना जाता है कि यह शुरुआत से ही अपरिवर्तित रहे है। इस प्रकार यह शब्द निर्माण और उच्चारण के दृष्टिकोण से उत्तम भाषा है।
संस्कृत का वर्तमान समय पर प्रभाव
हमारे भारत के वर्तमान संस्कृति में संस्कृत भाषा की छटा आज भी देखने को मिलती है।
हमारे निजी जीवन के तोर तरीके, रीती रिवाज, विवाह, यग्यो पवित , आदि संस्कारो में आज भी संस्कृत के मंत्रो का उपयोग किया है।
संस्कृत भाषा आज के समय में बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रह गया है, लकिन आज भी भारतीय संस्कृती और अध्यात्म को मानने वाले व्यक्ति आज भी संस्कृत का अनुसरण करते है। भगवत गीता आदि धर्म ग्रन्थ का अनुसरण करते है, जो की प्राचीन भारत के ऋषि मुनियो द्वारा संस्कृत में लिखा गया है।
परन्तु, समय दर समय संस्कृत भाषा कि गरिमा आज के युग में धूमिल होती जा रही है। एक समय में भारत मे मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा आज केवल धर्म ग्रंथो और किताबो में देखने को मिलता है।
संस्कृत का संरक्षण
संस्कृत ना केवल एक भाषा है बल्कि हमारे भारत के अत्यंत महत्व पूर्ण दारोहरो में से एक है। हमें अपने इस अमूल्य धरोहर कि रक्षा करनी चाहिये।
वर्तमान समय में जिस तरह संस्कृतभाषा हमारे जीवन से लुप्त हो रही है, अगर इसे संरक्षित न किया गया तो यह आने वाले समय में यह अपनी पहचान पूर्णतया खो देगी।
संस्कृत भाषा का विलुप्त होना न केवल इस भाषा का लोप होगा बल्कि हमारे भारत कि अमूल्य संस्कृति का भी लोप होगा। हमारे निजी जीवन के तोर तरीके, हमारे रीती रिवाज, हमारे संस्कार सब के जननी संस्कृत है।
संस्कृत के ख़तम होने से इन सब का लोप हो जाएगा , संस्कृत के ख़त्म हो जाने से हो जाएगा खत्म हमारा गौरवशाली इतिहास।
हालाँकि आज के समय में बहुत सारी संस्थाए संस्कृत को बचाने में कार्यरत है, जो के भारत कि इस धरोहर को बचाने में और लोगो तक पहुंचाने के भरसक प्रयास में लगी है। BHU (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) जैसे कई संस्था संस्कृत के संरक्षण में कार्यरत है।
संस्कृत भाषा का भारतीय संस्कृति में महत्व
भारतीय संस्कति और संस्कृत एक दूसरे के पूरक है। संस्कृत को भारतीय संस्कृति कि जननी कहना गलत नहीं होगा। हमारे संस्कृति की नींव संस्कृत भाषा है।
संस्कृत के उपयोगिता का अनुमान हम ऐसी बात से लगा सकते है की संस्कृत भाषा हिंदी, नेपाली, माराठी समेत कई अन्य भासाओ कि जननी है।
संस्कृत भाषा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है, हिन्दू धर्म के प्रमुख चार वेद ऋग वेद, यजुर वेद, शाम वेद, अथर्व वेद संस्कृत भाषा में ही लिखे गए है। हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र महा काव्य “महाभारत” भी महर्षि वेद व्यास जी द्वारा संस्कृत में ही लिखा गया है।
त्रेता युग में महर्षि बाल्मीकि जी द्वारा हिन्दुओ के महान आदर्श प्रभु श्री राम चंद्र जी के सम्पूर्ण जीवन लीला “रामायण” को भी संस्कृत में लिखा गया था।
संस्कृत भाष न केवल हिन्दू धर्म के दृस्टि कोण से महत्वपूर्ण है बल्कि यह बौद्ध एवं जैन धर्म के दृस्टि से भी काफी महत्व रखता है।
महर्षि श्री अरबिंदो जी ने इस भाषा के प्रशंशा में तो ये तक कह दिया था कि अगर मुझसे पूछा जाए भारत के पास सबसे बड़ा खजाना क्या है और उसकी सबसे बड़ी विरासत क्या है, तो मै बिना किसी हिचकिचाहट के जबाब दूंगा कि यह संस्कृत भाषा और साहित्य है और इसमें सबकुछ है।
उपसंहार
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृती की एक महत्वपूर्ण धरोहर में से है। बिना संस्कृत के भारत के गौरवशाली संस्कृति कि कल्पना करना संभव नहीं है, लकिन आज के दौर में संस्कृत विलिप्त होता जा रहा है। हमें अपने इस महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विराशत को इस भाषा रूपी धरोहर को बचाने पे धयान देना चाहिये।
हमें उम्मीद है आपको Essay on Sanskrit in Hindi (संस्कृत पर निबंध) पसंद आया होगा। अगर आपके मन में कुछ सुझाव है संस्कृत पर निबंध (Essay on Sanskrit in Hindi) से सम्बंधित तो आप कमेंट करके पूछ सकते है
धनयबाद।